Description
कालसर्पयोग कारण एवं निवारण
मध्यस्था चेत् ग्रहाः सर्वे राहुकेतु- द्वयोस्तदा ।
योगो हि कालसर्पख्याः भेदा द्वादशधा शृणु॥
जब राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाय तो कालसर्प नामक योग होता हे।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
अर्थात अन्तकाल जिसकी जहा स्मृति रहेगी वैसे ही शरीर की प्राप्ति होती है जैसे धन की इच्छा करता है तो उसे
सर्पयोनि की प्राप्ति होती है ,सर्पयोनि मे उत्पन्न जीव अपने गोत्र मे सर्पयोनि उत्पन्न करके विविध प्रकार की समस्या
,स्वास्थ्य, शान्ति , विकास संतति वृद्धि मे अवरोध उत्पन्न करता है ,यही योग समय बीतनेके बाद आगे चलकर कालसर्पयोग बनता है।
कालसर्पयोग की शान्ति सर्प के देवालय मे होती है, नव नाग की स्थापना सर्पवेदी की रचना करके तथा उसके विधिवत पूजा करने से कालसर्पयोग की शान्ति होती है।
कालसर्पयोग की शान्ति कराने मे
राहु का जप – 18000 होता है।
काल का जप – 11000 होता है।
सर्प का जप -11000 होता है।
मनसा देवी का जप- 5100 होता है।
1 व्यप्ति की कालसर्पयोग शान्ति कराने मे 7 ब्राह्मण लगते है।
1 व्यप्ति की कालसर्पयोग शान्ति कराने मे 31,000 हजार रुपये लगते है ।